एलन मस्क का Starlink भारत में शुरू, अब गाँव-गाँव पहुँचेगा हाई-स्पीड इंटरनेट!

एलन मस्क का Starlink भारत में शुरू, अब गाँव-गाँव पहुँचेगा हाई-स्पीड इंटरनेट!

Starlink अब भारत में आधिकारिक रूप से लॉन्च होने जा रहा है। यहाँ पढ़ें स्टारलिंक इंडिया के बारे में सभी डिटेल्स—किट की कीमत, मासिक प्लान, इंटरनेट स्पीड और बुकिंग जानकारी।

एलन मस्क की सैटेलाइट-आधारित इंटरनेट सर्विस Starlink को आखिरकार भारतीय सरकार से मंज़ूरी मिल गई है। अब कंपनी भारत में आधिकारिक तौर पर अपनी सेवाएँ शुरू करने की तैयारी में है। यह कदम खास तौर पर उन इलाकों के लिए बड़ा बदलाव साबित होगा, जहाँ आज भी फाइबर ब्रॉडबैंड या मोबाइल नेटवर्क पूरी तरह से उपलब्ध नहीं हो पाते।

हालाँकि, सरकार ने Starlink की कनेक्शन संख्या पर 2 मिलियन (20 लाख) यूज़र्स की सीमा तय की है ताकि मौजूदा टेलीकॉम कंपनियों—जैसे जियो, एयरटेल और बीएसएनएल—के इकोसिस्टम पर नकारात्मक असर न पड़े।

आइए जानते हैं भारत में स्टारलिंक की एंट्री से जुड़ी पूरी डिटेल्स—रिलीज़ डेट, प्राइसिंग, इंटरनेट स्पीड और अन्य ज़रूरी बातें।

Starlink क्या है?


Starlink एक हाई-स्पीड इंटरनेट सर्विस है, जिसे एलन मस्क की कंपनी SpaceX ऑपरेट करती है। यह परंपरागत ब्रॉडबैंड की तरह ज़मीन के नीचे बिछी केबल्स पर निर्भर नहीं रहती, बल्कि लो-अर्थ ऑर्बिट (LEO) सैटेलाइट्स के ज़रिए इंटरनेट उपलब्ध कराती है।

इस तकनीक की सबसे बड़ी खासियत यह है कि यह उन दूरदराज़ और ग्रामीण इलाकों तक इंटरनेट पहुंचा सकती है जहाँ फाइबर केबल बिछाना महंगा या लगभग असंभव है। अभी तक Starlink के 6,000 से ज़्यादा सैटेलाइट्स अंतरिक्ष में काम कर रहे हैं, और अब कंपनी भारत में एंट्री करने जा रही है।

सरकार की मंज़ूरी और लिमिट


लंबे समय से चल रही चर्चाओं और नियमों की बाधाओं के बाद, सरकार ने Starlink को व्यावसायिक ऑपरेशन की मंज़ूरी दे दी है। लेकिन शर्त के तौर पर एक सीमा तय की गई है—अधिकतम 20 लाख यूज़र्स ही स्टारलिंक का इस्तेमाल कर पाएंगे।

इस सीमा का मकसद है कि starlink की मौजूदगी भारतीय टेलीकॉम इंडस्ट्री को नुकसान न पहुँचाए और सभी के लिए स्वस्थ प्रतिस्पर्धा बनी रहे।

भारत में लॉन्च डेट


फिलहाल कंपनी ने आधिकारिक लॉन्च डेट की घोषणा नहीं की है। लेकिन इंडस्ट्री सूत्रों का मानना है कि 2025 के आखिर तक Starlink भारत में अपनी सेवाएँ शुरू कर सकता है। साथ ही, कंपनी जल्द ही अपनी वेबसाइट पर प्री-रजिस्ट्रेशन भी शुरू कर सकती है।

भारत में Starlink की संभावित कीमत


Starlink की सबसे बड़ी चर्चा इसकी कीमत को लेकर है। दुनिया के अन्य देशों में भी यह पारंपरिक ब्रॉडबैंड की तुलना में महंगा माना जाता है। भारत में इसके दाम अनुमानित तौर पर इस प्रकार हो सकते हैं:

Starlink किट (एक बार का हार्डवेयर खर्च): ₹40,000 – ₹45,000
(इसमें सैटेलाइट डिश, वाई-फाई राउटर, केबल्स और माउंटिंग ट्राइपॉड शामिल होंगे)

मासिक सब्सक्रिप्शन प्लान: ₹6,000 – ₹8,000


भले ही ये दाम जियोफाइबर या एयरटेल एक्सस्ट्रीम जैसे ब्रॉडबैंड से कहीं ज़्यादा हों, लेकिन ग्रामीण और दूरस्थ इलाकों के लिए जहाँ कोई और विकल्प नहीं है, वहाँ यह सेवा बेहद महत्वपूर्ण होगी।

इंटरनेट स्पीड और परफॉर्मेंस


Starlink का दावा है कि यह यूज़र्स को हाई-स्पीड और लो-लेटेंसी इंटरनेट मुहैया कराएगा। वैश्विक आंकड़ों को देखें तो भारत में इसकी औसत स्पीड इस प्रकार हो सकती है:

डाउनलोड स्पीड: 50 Mbps – 250 Mbps

अपलोड स्पीड: 20 Mbps – 40 Mbps

लेटेंसी (Ping): 20 – 40 ms


इन स्पीड्स के ज़रिए यूज़र्स आसानी से ऑनलाइन क्लासेस, वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग, गेमिंग और हाई-क्वालिटी स्ट्रीमिंग कर पाएंगे।

Starlink बनाम भारतीय टेलीकॉम कंपनियाँ


जियो, एयरटेल और बीएसएनएल शहरी और अर्ध-शहरी बाज़ारों में ब्रॉडबैंड व 5G सेवाएँ सस्ती कीमत पर उपलब्ध कराते हैं। लेकिन ग्रामीण इलाकों में अक्सर कनेक्शन स्थिर नहीं होता। वहीं Starlink इस गैप को भरने में मदद करेगा।

स्टारलिंक के फायदे:

किसी भी दूरस्थ इलाके में विश्वसनीय इंटरनेट

ज़मीन के नीचे केबल बिछाने की ज़रूरत नहीं

पारंपरिक सैटेलाइट इंटरनेट से बेहतर स्पीड और लेटेंसी


स्टारलिंक की चुनौतियाँ:

महंगा सेटअप और मासिक शुल्क

खराब मौसम में परफॉर्मेंस प्रभावित हो सकती है

शुरुआत में केवल 20 लाख यूज़र्स तक सीमित

किसे लेना चाहिए Starlink कनेक्शन?


Starlink उन लोगों के लिए सही है जो शहरों के बाहर रहते हैं या जहाँ इंटरनेट की सुविधाएँ बेहद कमज़ोर हैं। यह सेवा खासतौर पर उपयोगी होगी:

ग्रामीण या पहाड़ी इलाकों के घरों में

दूरस्थ व्यापारिक प्रोजेक्ट्स (जैसे कृषि, खनन, ऊर्जा परियोजनाएँ)

शिक्षा संस्थानों के लिए जहाँ इंटरनेट की कमी है

सरकारी सेवाओं के लिए जिनको कठिन इलाकों में कनेक्टिविटी चाहिए

भारत में सैटेलाइट इंटरनेट का भविष्य


Starlink की एंट्री के बाद भारतीय सैटेलाइट ब्रॉडबैंड मार्केट में और भी कंपनियाँ उतरने की तैयारी में हैं। OneWeb (भारती एयरटेल समर्थित) और Amazon का Project Kuiper भी भारत में अपने प्रोजेक्ट्स पर काम कर रहे हैं। इससे आने वाले समय में सैटेलाइट इंटरनेट और भी सस्ता और सुलभ हो सकता है।

निष्कर्ष


भारत में Starlink का लॉन्च डिजिटल डिवाइड को पाटने की दिशा में एक बड़ा कदम है। सरकार से मंज़ूरी मिलने और 20 लाख यूज़र्स की सीमा तय होने के बाद, यह सेवा उन इलाकों तक इंटरनेट पहुँचाने में अहम भूमिका निभाएगी जहाँ अब तक कनेक्टिविटी का सपना अधूरा था।

हालाँकि इसकी कीमत सामान्य ब्रॉडबैंड से कहीं ज़्यादा है, लेकिन ग्रामीण भारत को डिजिटल अर्थव्यवस्था से जोड़ने के लिए यह बेहद महत्वपूर्ण साबित होगी। अब देखना यह होगा कि स्टारलिंक भारतीय बाज़ार में कितनी सफलता हासिल करता है और क्या यह लाखों लोगों की उम्मीदों पर खरा उतर पाएगा।

ऑनलाइन गेमिंग बिल लोकसभा: भारत के डिजिटल गेमिंग क्षेत्र में बड़ा बदलाव!

ऑनलाइन गेमिंग बिल लोकसभा: भारत के डिजिटल गेमिंग क्षेत्र में बड़ा बदलाव!


भारत की संसद ने 20 अगस्त 2025 को एक ऐतिहासिक कदम उठाते हुए “ऑनलाइन गेमिंग बिल (प्रमोशन और रेगुलेशन) 2025” (Promotion and Regulation of Online Gaming Bill, 2025) को लोकसभा में पास कर दिया। यह कानून देश में तेजी से बढ़ते ऑनलाइन गेमिंग उद्योग को नियंत्रित करने और उससे जुड़े खतरों को रोकने के लिए लाया गया है।

ऑनलाइन गेमिंग बिल का मुख्य उद्देश्य


इस विधेयक का सबसे अहम प्रावधान है – सभी प्रकार के पैसों पर आधारित ऑनलाइन गेम्स पर पूर्ण प्रतिबंध। इसमें फैंटेसी स्पोर्ट्स, पोकर, रम्मी, ऑनलाइन लॉटरी और बेटिंग जैसे खेल शामिल हैं, चाहे वे कौशल पर आधारित हों या किस्मत पर।

ऑनलाइन गेमिंग बिल तीन बड़े पहलुओं पर रोक लगाता है:

पैसों से जुड़े ऑनलाइन गेम्स की पेशकश या संचालन

ऐसे गेम्स का प्रचार-प्रसार और विज्ञापन

इनसे जुड़ी वित्तीय लेन-देन की प्रक्रिया


इसके तहत बैंकों और डिजिटल भुगतान प्लेटफॉर्म्स को भी ऐसे गेम्स के लिए कोई सुविधा देने से मना कर दिया गया है।

दंड और सख्ती


सरकार ने ऑनलाइन गेमिंग बिल में सख्त प्रावधान रखे हैं ताकि इसका पालन सुनिश्चित हो सके:

ऑपरेटर और कंपनियां: अगर कोई कंपनी पैसों वाले गेम्स का संचालन करती है, तो उस पर 3 साल की कैद और/या 1 करोड़ रुपये तक जुर्माना लगाया जा सकता है।

विज्ञापनदाता: अगर कोई संस्था ऐसे गेम्स का प्रचार करती है, तो 2 साल जेल और/या 50 लाख रुपये जुर्माना होगा।

बैंक और पेमेंट गेटवे: अगर ये संस्थान इस तरह के लेन-देन में शामिल पाए जाते हैं तो उन पर भी बराबर का अपराध माना जाएगा।

बार-बार अपराध करने वालों पर 3–5 साल की कैद और 2 करोड़ रुपये तक जुर्माना लगाया जा सकता है।


इसके अलावा, इन अपराधों को गंभीर और गैर-जमानती श्रेणी में रखा गया है। यानी जांच एजेंसियों को बिना वारंट गिरफ्तारी और तलाशी का अधिकार होगा।

ई-स्पोर्ट्स और सुरक्षित गेमिंग को बढ़ावा


यह कानून केवल प्रतिबंध तक सीमित नहीं है। सरकार ने साफ किया है कि:

ई-स्पोर्ट्स (e-sports) को एक मान्यता प्राप्त खेल की श्रेणी दी जाएगी।

युवा खिलाड़ियों के लिए प्रशिक्षण केंद्र, अनुसंधान और इन्फ्रास्ट्रक्चर को बढ़ावा दिया जाएगा।

शैक्षिक और सामाजिक गेम्स, जो कौशल और डिजिटल शिक्षा को प्रोत्साहित करते हैं, उनकी अनुमति होगी।

ऐसे गेम्स जिनमें किसी प्रकार का पैसों का दांव न हो, उन्हें आगे बढ़ाया जाएगा।

राष्ट्रीय गेमिंग प्राधिकरण


इस विधेयक के तहत एक राष्ट्रीय गेमिंग प्राधिकरण (National Gaming Authority) की स्थापना का प्रस्ताव है। यह संस्था निम्न जिम्मेदारियां निभाएगी:

गेम्स और प्लेटफॉर्म्स का पंजीकरण और वर्गीकरण

यह तय करना कि कौन-सा गेम “मनी गेम” है

शिकायतों का निपटारा करना

समय-समय पर दिशा-निर्देश और नीतियां जारी करना।

सरकार का तर्क और उद्देश्य


सरकार ने इस ऑनलाइन गेमिंग बिल के पीछे कई बड़े कारण बताए हैं:

युवाओं में बढ़ती लत, कर्ज और मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं को रोकना।

अवैध बेटिंग और जुए से जुड़ी मनी लॉन्ड्रिंग और आतंकवादी फंडिंग जैसी गतिविधियों पर अंकुश लगाना।

देशभर में एक एकीकृत कानून लाना, क्योंकि अभी अलग-अलग राज्यों के अपने-अपने नियम हैं।

जिम्मेदार और सुरक्षित गेमिंग को बढ़ावा देकर भारत को एक सुरक्षित डिजिटल इकोनॉमी की ओर ले जाना।

हितधारकों की प्रतिक्रिया


इस विधेयक को लेकर अलग-अलग वर्गों की राय बंटी हुई है।

समर्थन में आवाजें

समर्थक मानते हैं कि यह कानून युवाओं को लत और आर्थिक नुकसान से बचाने में मदद करेगा। समाज में कई परिवारों ने ऑनलाइन जुए की वजह से मानसिक और आर्थिक संकट झेले हैं।

उद्योग जगत की चिंता

दूसरी ओर, फैंटेसी स्पोर्ट्स और रियल मनी गेमिंग कंपनियां जैसे Dream11, MPL, Zupee, Games24x7 आदि पर सीधा असर पड़ा है। उद्योग विशेषज्ञों का कहना है कि:

लगभग 400 से ज्यादा कंपनियां बंद होने के कगार पर हैं।

लाखों लोगों की नौकरियां खतरे में आ सकती हैं।

विदेशी निवेशक पीछे हट सकते हैं।

क्रिकेट और अन्य खेलों की स्पॉन्सरशिप पर गंभीर असर पड़ेगा।


विशेषज्ञों का यह भी कहना है कि प्रतिबंध से खिलाड़ी अवैध विदेशी वेबसाइट्स की ओर जा सकते हैं।

राजनीतिक असहमति

कांग्रेस सांसद कार्ति चिदंबरम और शशि थरूर जैसे नेताओं ने आरोप लगाया कि सरकार ने बिना पर्याप्त चर्चा और समीक्षा के ऑनलाइन गेमिंग बिल पास किया है। उन्होंने इसे संसदीय समिति को भेजने की मांग की थी।

क्रिकेट स्पॉन्सरशिप पर असर


भारत में क्रिकेट की कमाई का बड़ा हिस्सा फैंटेसी स्पोर्ट्स कंपनियों से आता है।

Dream11 भारतीय क्रिकेट टीम का टाइटल स्पॉन्सर था, जिसका अनुबंध लगभग ₹358 करोड़ का था।

My11Circle आईपीएल में ₹625 करोड़ का करार कर चुका था।


अब इन स्पॉन्सरशिप पर संकट गहराने की संभावना है।

SEO कीवर्ड्स

ऑनलाइन गेमिंग बिल लोकसभा

ऑनलाइन गेमिंग पर प्रतिबंध भारत

ऑनलाइन गेमिंग (प्रमोशन और रेगुलेशन) विधेयक 2025

भारत में फैंटेसी गेमिंग बैन

ई-स्पोर्ट्स को मान्यता भारत

नेशनल गेमिंग अथॉरिटी इंडिया

निष्कर्ष


ऑनलाइन गेमिंग (प्रमोशन और रेगुलेशन) विधेयक 2025 भारत में ऑनलाइन गेमिंग की तस्वीर बदलने वाला साबित हो सकता है। जहां यह कानून पैसों पर आधारित खेलों पर पूरी तरह रोक लगाता है, वहीं ई-स्पोर्ट्स और शैक्षिक गेमिंग को प्रोत्साहन देता है। इसका मकसद युवाओं और समाज को सुरक्षित रखना है, लेकिन इससे बड़े पैमाने पर कंपनियों और खेल प्रायोजन पर असर पड़ेगा।

यह कानून भारत के डिजिटल भविष्य में एक नया अध्याय जोड़ता है—जहां जिम्मेदारी, पारदर्शिता और सुरक्षा को प्राथमिकता दी जाएगी।

Perplexity AI ने गूगल क्रोम खरीदने के लिए 34.5 अरब डॉलर का प्रस्ताव दिया – भारतीय मूल के CEO अरविंद श्रीनिवास का बड़ा कदम!

Perplexity AI ने गूगल क्रोम खरीदने के लिए 34.5 अरब डॉलर का प्रस्ताव दिया – भारतीय मूल के CEO अरविंद श्रीनिवास का बड़ा कदम!

Perplexity AI, भारतीय मूल के अरविंद श्रीनिवास के नेतृत्व में, ने 34.5 अरब डॉलर में Google Chrome खरीदने का साहसिक प्रस्ताव दिया है। जाने इस ऐतिहासिक ऑफर के पीछे की वजह और इसका टेक इंडस्ट्री पर प्रभाव।

Perplexity AI – AI इंडस्ट्री का उभरता सितारा


2022 में अरविंद श्रीनिवास द्वारा स्थापित Perplexity AI ने तेज़ी से ग्लोबल AI मार्केट में अपनी पहचान बनाई है।
यह प्लेटफ़ॉर्म पारंपरिक सर्च इंजनों से अलग, सीधे और प्रमाणित स्रोतों के साथ उत्तर प्रदान करता है।

– प्रमुख निवेशक: Nvidia, जेफ बेज़ोस, SoftBank
– मुख्य उद्देश्य: AI के ज़रिये पारदर्शी और तेज़ सर्च अनुभव देना
– वैश्विक पहुंच: करोड़ों यूज़र्स तक रणनीतिक साझेदारियां

गूगल क्रोम के अधिग्रहण का प्रस्ताव क्यों खास है?


12 अगस्त 2025 को Perplexity AI ने Google को 34.5 अरब डॉलर का ऑफर देकर सबको चौंका दिया।
ये राशि कंपनी की मौजूदा वैल्यूएशन (18 अरब डॉलर) से लगभग दोगुनी है।

Google पर 2024 में अमेरिकी कोर्ट द्वारा एंटीट्रस्ट उल्लंघन का आरोप साबित हुआ था, जिसमें कहा गया कि कंपनी ने सर्च मार्केट में अनुचित दबदबा बनाया। Chrome का अलग होना एक समाधान माना गया।

आज Chrome के पास:
– 3 अरब से अधिक सक्रिय यूज़र
– 65% से ज्यादा ब्राउज़र मार्केट शेयर
ये वजहें इसे तकनीकी दुनिया का सबसे कीमती डिजिटल प्रोडक्ट बनाती हैं।

Perplexity AI की योजना और शर्तें


Project Solomon नाम से इस डील को तैयार किया गया है, जिसमें शामिल हैं:
1. Chrome के Chromium इंजन को ओपन-सोर्स रखना
2. Google को डिफ़ॉल्ट सर्च इंजन बनाए रखना
3. 2 साल में 3 अरब डॉलर का अतिरिक्त निवेश
4. असली Chrome इंजीनियर्स को टीम में बनाए रखना

Perplexity का कहना है कि यह कदम सिर्फ मुनाफे के लिए नहीं, बल्कि पब्लिक इंटरेस्ट और प्रतिस्पर्धा संतुलन के लिए है।

रणनीतिक महत्व: AI ब्राउज़र की नई क्रांति


Perplexity अपने AI-आधारित “Comet” ब्राउज़र पर काम कर रही है।
अगर Chrome का अधिग्रहण सफल हो गया, तो यह:
– अरबों यूज़र्स तक सीधी पहुंच देगा
– गूगल के सर्च दबदबे को चुनौती देगा
– AI और इंटरनेट सर्च अनुभव को नया रूप देगा

अरविंद श्रीनिवास – सिलीकोन वैली में भारतीय मूल का नेतृत्व


– जन्म: चेन्नई, भारत।
– शिक्षा: IIT मद्रास, UC बर्कले (PhD)
– करियर: OpenAI, Google Brain, DeepMind
– दृष्टि: स्वतंत्र AI कंपनी बनाना, तकनीक को सभी के लिए सुलभ और पारदर्शी रखना
– उपलब्धि: Apple और Meta जैसे दिग्गजों के अधिग्रहण प्रस्ताव ठुकराए

निष्कर्ष: टेक इंडस्ट्री का पावर शिफ्ट?


Perplexity का 34.5 अरब डॉलर का प्रस्ताव सिर्फ एक बिज़नेस डील नहीं, बल्कि टेक्नोलॉजी जगत की दिशा बदलने वाला कदम हो सकता है।
इससे:
– ब्राउज़र और सर्च मार्केट में नई प्रतिस्पर्धा
– यूज़र डेटा और गोपनीयता पर नए मानक
– AI इंटीग्रेशन में तेजी
देखने वाली बात होगी कि क्या Google इस प्रस्ताव को मंजूर करता है या नहीं।

SEO कीवर्ड्स
– Perplexity AI
– अरविंद श्रीनिवास
– Google Chrome अधिग्रहण
– 34.5 अरब डॉलर डील
– AI ब्राउज़र
– Chromium ओपन सोर्स
– Comet ब्राउज़र
– Google Antitrust केस

सरकार का डिजिटल सफाया: ALTBalaji, ULLU समेत 25 ऐप्स और वेबसाइट्स पर बैन, जानिए वजह!

सरकार का डिजिटल सफाया: ALTBalaji, ULLU समेत 25 ऐप्स और वेबसाइट्स पर बैन, जानिए वजह!


केंद्र सरकार ने Ullu और ALTBalaji सहित 25 मोबाइल ऐप्स और वेबसाइट्स को बैन कर दिया है। इन सभी बैंड ऐप्स और वेबसाइट्स पर अश्लील और आपत्तिजनक कंटेंट प्रसारित करने का आरोप है।

भारत सरकार ने डिजिटल प्लेटफॉर्म्स पर अश्लील, अभद्र और अशोभनीय सामग्री को लेकर बड़ा कदम उठाया है। केंद्र सरकार ने 25 मोबाइल ऐप्स और वेबसाइट्स को प्रतिबंधित कर दिया है जो कथित रूप से अश्लील और ‘पॉर्नोग्राफिक’ कंटेंट को प्रसारित कर रही थीं।

सरकारी सूत्रों के अनुसार जिन प्रमुख ऐप्स और साइट्स को बैन किया गया है, उनमें ALTBalaji, ULLU, Big Shots App, Desiflix, Boomex, Navarasa Lite और Gulab App शामिल हैं। ये सभी प्लेटफॉर्म्स अपने बोल्ड कंटेंट और एडल्ट वेब सीरीज के लिए काफी चर्चित रहे हैं।

❓ बैन की वजह क्या है?


सरकारी जांच और आम नागरिकों की शिकायतों के आधार पर पाया गया कि ये ऐप्स और वेबसाइट्स:

अत्यधिक अश्लील कंटेंट प्रसारित कर रहे थे।

उम्र सत्यापन (Age Verification) जैसे सुरक्षा उपायों का अभाव था, जिससे नाबालिग आसानी से इस कंटेंट तक पहुंच पा रहे थे।

कानूनी और नैतिक मानकों का उल्लंघन कर रहे थे।


इस कार्रवाई को सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम की धारा 69A के तहत अंजाम दिया गया है, जो सरकार को देश की सार्वजनिक व्यवस्था, नैतिकता और सुरक्षा के हित में किसी भी वेबसाइट या ऐप को ब्लॉक करने का अधिकार देती है।

📱 किन ऐप्स और साइट्स को किया गया बैन?


इन 25 बैन किए गए प्लेटफॉर्म्स में कई भारतीय एडल्ट ओटीटी ऐप्स और वेबसाइट्स शामिल हैं, जो हाल के वर्षों में अपने बोल्ड और विवादास्पद कंटेंट के कारण लोकप्रिय हुए:

ALTBalaji – एकता कपूर की कंपनी का ऐप, जो बोल्ड वेब सीरीज के लिए जाना जाता है।

ULLU – अपने सॉफ्ट एडल्ट कंटेंट के लिए मशहूर।

Desiflix, Boomex, Big Shots, Navarasa Lite, Gulab App – ऐसे ऐप्स जिनकी लोकप्रियता तेजी से बढ़ रही थी।


इनमें से कुछ प्लेटफॉर्म्स को पहले भी चेतावनी दी गई थी, लेकिन उन्होंने नाम बदलकर या नए इंटरफेस से दोबारा काम शुरू कर दिया था।

🌐 आम जनता और बच्चों तक पहुंच


ये ऐप्स अधिकांशतः गूगल प्ले स्टोर और अन्य प्लेटफॉर्म्स पर आसानी से उपलब्ध थे। इनमें कई ऐप्स ऐसे थे जो बिना किसी सख्त वेरिफिकेशन के कंटेंट दिखा रहे थे। इनकी मार्केटिंग सोशल मीडिया और यूट्यूब पर अश्लील ट्रेलर्स के जरिए की जाती थी, जिससे ये कंटेंट नाबालिगों तक भी पहुंच रहा था।

⚖️ कानूनी दृष्टिकोण


आईटी अधिनियम की धारा 69A के अंतर्गत यह बैन लागू किया गया है। सरकार को यह अधिकार है कि वह किसी भी साइट या ऐप को बंद कर सकती है यदि वह:

भारत की संप्रभुता या अखंडता को खतरे में डालता है।

सार्वजनिक व्यवस्था को प्रभावित करता है।

नैतिकता या शालीनता का उल्लंघन करता है।


एक वरिष्ठ सरकारी अधिकारी ने कहा, “ये ऐप्स खुलेआम कानून और सामाजिक मर्यादा की अवहेलना कर रहे थे। ये कार्रवाई ज़रूरी थी ताकि डिजिटल प्लेटफॉर्म्स पर अनुशासन बना रहे।”

📢 इंडस्ट्री और यूज़र्स की प्रतिक्रिया


Ullu और ALTBalaji जैसे ऐप्स के बैन को लेकर सोशल मीडिया और फिल्म इंडस्ट्री में मिश्रित प्रतिक्रियाएं देखने को मिल रही हैं। कुछ लोगों ने इसे सकारात्मक कदम बताया है, वहीं कुछ ने इसे रचनात्मक स्वतंत्रता पर हमला करार दिया है।

कई दर्शकों का कहना है कि सरकार को ऐसे प्लेटफॉर्म्स पर नियंत्रण रखना चाहिए, जबकि कुछ का मानना है कि वयस्कों को अपनी पसंद से देखने का अधिकार होना चाहिए।

🔮 आगे क्या होगा?


सरकार अब ओटीटी प्लेटफॉर्म्स के लिए सख्त गाइडलाइंस लाने की तैयारी में है, जिसमें:

एज-वेरिफिकेशन सिस्टम को अनिवार्य बनाया जाएगा।

कंटेंट के लिए सेल्फ-रेगुलेशन बोर्ड को प्रोत्साहन मिलेगा।

ऐसे ऐप्स पर कड़ी सज़ा और दोबारा लॉन्च पर रोक लगाई जाएगी।


MeitY (इलेक्ट्रॉनिक्स और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय) ऐप स्टोर्स के साथ मिलकर सुनिश्चित कर रहा है कि इन ऐप्स को पूरी तरह से हटाया जाए और ये फिर से किसी नए नाम से लॉन्च न हो पाएं।

✅ निष्कर्ष


ALTBalaji और Ullu जैसे 25 अश्लील ऐप्स और वेबसाइट्स पर केंद्र सरकार की यह कार्रवाई एक स्पष्ट संकेत है कि डिजिटल प्लेटफॉर्म्स पर अब नैतिक और कानूनी जवाबदेही अनिवार्य होगी।

यह कदम डिजिटल स्पेस में एक साफ-सुथरे और सुरक्षित वातावरण की ओर बढ़ाया गया एक अहम प्रयास है, जिससे यह सुनिश्चित हो सके कि इंटरनेट पर सामग्री भारतीय सांस्कृतिक मूल्यों के अनुरूप हो।

YouTube Trending page 21 जुलाई को होगा बंद, 9 साल बाद लिया गया बड़ा फैसला कंपनी ने घटती लोकप्रियता को बताया कारण!

YouTube Trending page 21 जुलाई को होगा बंद, 9 साल बाद लिया गया बड़ा फैसला कंपनी ने घटती लोकप्रियता को बताया कारण!


दुनिया के सबसे बड़े वीडियो प्लेटफॉर्म YouTube ने एक अहम फैसला लेते हुए घोषणा की है कि वह 21 जुलाई, 2025 से अपने “Trending” पेज को हटा देगा। यह फीचर 2015 में लॉन्च किया गया था और इसका उद्देश्य था लोगों को उन वीडियोस से जोड़ना जो उस समय सबसे ज्यादा देखे और पसंद किए जा रहे थे।

Trending पेज को क्यों हटाया जा रहा है?


YouTube की आधिकारिक घोषणा के अनुसार, पिछले कुछ वर्षों में Trending पेज की उपयोगिता में भारी गिरावट देखने को मिली है। कंपनी ने स्वीकार किया कि इस पेज पर विजिट्स लगातार कम हो रहे थे, जिससे इसका महत्व धीरे-धीरे घटता चला गया।

आज के समय में उपयोगकर्ता AI-आधारित सुझावों, पर्सनलाइज़्ड होमपेज, और YouTube Shorts जैसे फीचर्स पर ज्यादा निर्भर हो गए हैं। ऐसे में एक समान रूप से सभी को दिखाया जाने वाला Trending पेज अब उतना उपयोगी नहीं रहा।

क्या Trending पेज अपना मकसद पूरा कर चुका था?


Trending सेक्शन को शुरू में इस मकसद से लाया गया था कि यूज़र्स यह जान सकें कि YouTube पर किस तरह का कंटेंट उस वक्त वायरल है। लेकिन धीरे-धीरे यह फीचर एक ऐसा टूल बन गया, जिसका इस्तेमाल कई बड़े यूट्यूबर्स और म्यूज़िक कंपनियां अपने वीडियो की लोकप्रियता दिखाने के लिए करने लगे।

आलोचकों का मानना था कि यह सेक्शन इंडिपेंडेंट या नए क्रिएटर्स को कम मौका देता था, और प्रायः उन्हीं चैनलों को जगह मिलती थी जिनकी ऑडियंस पहले से बड़ी थी।

अब Trending की जगह क्या आएगा?


हालांकि YouTube ने Trending का कोई सीधा विकल्प घोषित नहीं किया है, लेकिन Explore टैब को अब ज्यादा महत्व मिलने की उम्मीद है। Explore सेक्शन पहले से ही म्यूजिक, गेमिंग, न्यूज़ और मूवीज़ जैसे कई कैटेगरीज़ में कंटेंट सजेस्ट करता है।

इसके अलावा, YouTube Shorts, जो कि अब तेजी से लोकप्रिय हो रहा है, कंटेंट डिस्कवरी का एक मजबूत जरिया बन चुका है। आने वाले समय में YouTube अपने यूज़र्स को उनकी रुचियों के आधार पर ज्यादा पर्सनलाइज्ड कंटेंट दिखाएगा।

भविष्य की दिशा: लोकप्रियता से ज्यादा व्यक्तिगत अनुभव


YouTube का यह कदम दर्शाता है कि अब डिजिटल प्लेटफॉर्म्स व्यक्तिगत पसंद पर आधारित अनुभव को अधिक महत्व दे रहे हैं। Instagram, TikTok और YouTube जैसे प्लेटफॉर्म्स अब AI-आधारित सजेशन सिस्टम पर काम कर रहे हैं, जो यूज़र्स को उनकी पसंद के अनुसार कंटेंट दिखाते हैं।

Trending पेज को हटाकर, YouTube इस बदलती डिजिटल आदत के अनुसार खुद को ढाल रहा है, जहां तेज़, कस्टमाइज़्ड और रियल टाइम कंटेंट एक्सपीरियंस की मांग बढ़ती जा रही है।

निष्कर्ष:


YouTube का Trending पेज अब इतिहास बन जाएगा। एक समय पर जो फीचर सबसे अहम हुआ करता था, आज की टेक्नोलॉजी और यूजर बिहेवियर में बदलाव के चलते अब उसकी जरूरत नहीं रह गई है। YouTube अब पर्सनलाइज्ड और इंटेलिजेंट कंटेंट सिफारिशों पर फोकस कर रहा है, जिससे यूज़र्स को और बेहतर अनुभव मिल सके।

बेंगलुरु में “No UPI, Only Cash” ट्रेंड क्यों कर रहा है वायरल? जानिए असली वजह!

बेंगलुरु में “No UPI, Only Cash” ट्रेंड क्यों कर रहा है वायरल? जानिए असली वजह!


भारत की टेक्नोलॉजी राजधानी कहे जाने वाले बेंगलुरु में एक हैरान करने वाला ट्रेंड सामने आया है। कई दुकानदारों और व्यापारियों ने सोशल मीडिया पर “No UPI, Only Cash” वाली पोस्ट की हैं जो कि बहुत वायरल हो रही हैं।

कई दुकानदार अब UPI या किसी भी डिजिटल भुगतान को स्वीकार नहीं कर रहे हैं और ग्राहकों से केवल नकद लेन-देन की मांग कर रहे हैं। इस फैसले से शहर के डिजिटल-फ्रेंडली उपभोक्ताओं को काफी असुविधा हो रही है।

आखिर क्या है इसके पीछे की वजह?


इस बदलाव के पीछे कई प्रमुख कारण हैं जो छोटे व्यापारियों को डिजिटल भुगतान से दूर कर रहे हैं:

1. UPI पर बढ़ती अप्रत्यक्ष लागतें

हालांकि ग्राहकों के लिए UPI ट्रांजैक्शन मुफ्त हैं, लेकिन व्यापारियों को कुछ मामलों में पेमेंट गेटवे चार्ज, सेटलमेंट डिले, या लिमिटेड सर्विसेस का सामना करना पड़ता है। छोटे दुकानदारों का कहना है कि उन्हें भुगतान की पूरी राशि नहीं मिलती या उसमें देरी होती है।

2. टैक्स और कानूनी जटिलताएं

डिजिटल भुगतान से लेन-देन का पूरा रिकॉर्ड बन जाता है, जिससे टैक्स विभाग की नजर में आना तय है। कई छोटे दुकानदार जो अब तक नकद में व्यापार कर टैक्स से बचते थे, अब डिजिटल भुगतान से अतिरिक्त कर बोझ और कॉम्प्लायंस का डर महसूस कर रहे हैं।

3. तकनीकी खराबियां और नेटवर्क समस्याएं

UPI आधारित भुगतान में कभी-कभी सर्वर फेलियर, नेटवर्क की समस्या, या लेन-देन की देरी भी आम हो गई है। दुकानदारों का कहना है कि ट्रांजैक्शन फेल होने पर ग्राहक असंतुष्ट हो जाते हैं और उन्हें नुकसान होता है।

4. नकद में तरलता (Liquidity) बेहतर

छोटे व्यापारी दिन-प्रतिदिन की खरीदारी, सप्लायर का भुगतान और अन्य खर्चों के लिए तुरंत नकद उपलब्धता को प्राथमिकता देते हैं। डिजिटल ट्रांजैक्शन की प्रक्रिया में समय लगता है, जिससे उनका कार्य प्रभावित होता है।

ग्राहकों की प्रतिक्रिया


युवा पीढ़ी और डिजिटल लेन-देन की आदती ग्राहक इस चलन से नाराज़ हैं। कई लोगों ने सोशल मीडिया पर ऐसे बोर्ड की तस्वीरें साझा की हैं, जिन पर लिखा है, “No UPI, Only Cash”। कुछ ग्राहक नकद लेकर आ रहे हैं, जबकि कुछ दुकानों से खरीदारी बंद कर चुके हैं।

शहर में आने वाले पर्यटक और नए लोग इस स्थिति से और भी अधिक असमंजस में हैं, क्योंकि भारत के बाकी हिस्सों में डिजिटल भुगतान को तेजी से अपनाया जा रहा है।

सरकार की डिजिटल इंडिया पहल को चुनौती


सरकार UPI और डिजिटल पेमेंट को बढ़ावा देने में अग्रणी रही है। भारत आज दुनिया में सबसे ज़्यादा रियल टाइम डिजिटल ट्रांजैक्शन करने वाला देश बन चुका है। फिर भी, बेंगलुरु जैसे शहर में ये रुझान दिखाता है कि जमीनी स्तर पर अब भी समस्याएं बरकरार हैं।

आगे का रास्ता


जब तक सरकार व्यापारी वर्ग की चिंताओं को गंभीरता से नहीं लेती — जैसे कि चार्जेस में कटौती, टैक्स में छूट, या सिस्टम को ज्यादा भरोसेमंद बनाना — तब तक नकद लेन-देन की ओर वापसी जारी रह सकती है।

फिलहाल, यदि आप बेंगलुरु में हैं, तो यह सुझाव दिया जा सकता है कि अपने वॉलेट में कुछ नकद ज़रूर रखें — क्योंकि हर दुकान डिजिटल नहीं है।