
केरल के अनुभवी कम्युनिस्ट नेता और पूर्व मुख्यमंत्री VS Achuthanandan का 101 वर्ष की आयु में निधन हो गया। यह खबर कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया (मार्क्सवादी) ने सोमवार को जारी की, जो एक राजनीतिक युग के अंत की सूचना देती है।
राजनीतिक जीवन की लंबी यात्रा
VS Achuthanandan का जन्म 20 अक्टूबर 1923 में केरल के अलाप्पुझा जिले में हुआ था। गरीब परिवेश में जन्म लेने वाले अच्युतानंदन ने देश के स्वतंत्रता संग्राम के दौरान सक्रिय भागीदारी निभाई और 1964 में सीपीआई से विभाजन के पश्चात् सीपीएम के संस्थापकों में शामिल हुए। उन्होंने केरल की राजनीतिक धारा और सामाजिक बदलाव में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।
मुख्यमंत्री के रूप में सेवाएं
VS Achuthanandan ने 2006 से 2011 तक केरल के 11वें मुख्यमंत्री के रूप में सेवा की। अपने साफ-सुथरे व्यक्तित्व और भ्रष्टाचार विरोधी नीतियों के लिए प्रसिद्ध, उन्होंने मुनार में अवैध ज़मीन हड़पाव पर कार्रवाई के साथ-साथ सार्वजनिक स्वास्थ्य और शिक्षा क्षेत्रों में अहम सुधार किए। उनके नेतृत्व में किसानों, श्रमिकों और पर्यावरण संरक्षण के मुद्दों को विशेष महत्व दिया गया।
कम्युनिस्ट विचारधारा के प्रति अडिग प्रतिबद्धता
अपने पूरे जीवनकाल में VS Achuthanandan ने मार्क्सवादी विचारधारा का पालन किया। स्वतंत्रता संग्राम के गवाह और प्रतिभागी के रूप में, उन्होंने न केवल राजनीति के क्षेत्र में बल्कि सामाजिक आंदोलन में भी अपनी छाप छोड़ी। पार्टी के भीतर कई चुनौतियों और मतभेदों के बावजूद, वह सदैव नैतिक आवाज बने रहे।
उनके जोशीले भाषण और स्पष्ट वक्तव्य ने केरल की राजनीति में एक विशेष स्थान बनाया, जिससे जनता और सहयोगी दोनों में उनकी काफी लोकप्रियता बनी रही।
विरासत जो हमेशा याद रखी जाएगी
उनके निधन के बाद विभिन्न राजनीतिक दलों और नेताओं ने शोक व्यक्त किया। केरल के मुख्यमंत्री पिनारायी विजयन, राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और सीपीएम के महासचिव सिताराम येचुरी समेत कई प्रमुख हस्तियों ने उनके योगदान की सराहना की। केरल सरकार ने शोक की आधिकारिक घड़ी की घोषणा की है और सार्वजनिक श्रद्धांजलि समारोह की योजना बनाई गई है, जिसमें देशभर के वरिष्ठ नेता और समर्थक शामिल होने की उम्मीद जताई गई है।
एक युग का अंत
VS Achuthanandan का निधन केवल एक अनुभवी नेता के खो जाने का संकेत नहीं, बल्कि ऐसे समय का प्रतीक है जब जनता के हितों के लिए संघर्ष करने वाले नेताओं की कहानी समाप्त हो रही है। उनके कार्यकाल और जीवन से प्रेरणा लेकर आने वाले कई पीढ़ियाँ सामाजिक न्याय, जन-संवेदना और निष्पक्ष प्रशासन की राह पर अग्रसर होंगी।
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