
रेटिंग: ⭐⭐⭐ (3/5)
निर्देशक अनुराग बसु एक बार फिर शहरी रिश्तों की उलझनों को लेकर परदे पर लौटे हैं अपनी नई फिल्म मेट्रो… इन डिनो के साथ। यह फिल्म साल 2007 में आई उनकी चर्चित फिल्म लाइफ इन अ मेट्रो की आत्मिक अगली कड़ी मानी जा रही है। इस बार भी उन्होंने एक दमदार स्टारकास्ट, दिल छू लेने वाले संगीत और इमोशनल कहानियों का ताना-बाना बुना है। लेकिन सवाल ये है – क्या ये फिल्म पिछली बार की तरह दिल जीतने में सफल रही?
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कास्ट और क्रू:
निर्देशक: अनुराग बसु
निर्माता: भूषण कुमार, कृष्ण कुमार, अनुराग बसु और तानी बसु
लेखक: अनुराग बसु
संगीत: प्रीतम
छायांकन: राजेश शुक्ला
संपादन: अकीव अली
मुख्य कलाकार:
आदित्य रॉय कपूर – अर्जुन के रूप में
सारा अली खान – तारा के रूप में
अनुपम खेर – सत्यजीत
नीना गुप्ता – कुसुम
अली फज़ल – आयुष
फातिमा सना शेख – मिशा
कोंकणा सेन शर्मा – शहाना
पंकज त्रिपाठी – विनोद
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कहानी का सारांश:
फिल्म मेट्रो… इन डिनो कई किरदारों की भावनात्मक और जीवन से जुड़ी कहानियों को एक-दूसरे से जोड़ते हुए पेश करती है। हर किरदार एक अलग चुनौती और संबंध की उलझन से जूझ रहा है। कोई अकेलेपन से परेशान है, कोई प्यार में उलझा हुआ है और कोई अपने करियर और रिश्तों के बीच तालमेल नहीं बैठा पा रहा।
अर्जुन और तारा एक युवा जोड़ा हैं जो कमिटमेंट से डरते हैं। सत्यजीत और कुसुम उम्र के इस पड़ाव में फिर से अपनापन खोजते हैं। शहाना और विनोद, जो अतीत की चुभती यादों से जूझ रहे हैं, एक-दूसरे में उम्मीद तलाशते हैं। वहीं मिशा और आयुष नए दौर की उलझनों का प्रतिनिधित्व करते हैं – सपनों और सच्चाई के बीच फंसे हुए।
इन सभी किरदारों की ज़िंदगियाँ कहीं न कहीं एक-दूसरे से टकराती हैं – कभी सामने से, कभी बस एहसासों में।
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फिल्म की खासियतें:
अभिनय: पंकज त्रिपाठी और कोंकणा सेन शर्मा अपनी अदाकारी से जान डाल देते हैं। अनुपम खेर और नीना गुप्ता भी उम्रदराज़ किरदारों में गहराई लाते हैं। आदित्य रॉय कपूर और सारा अली खान की जोड़ी फ्रेश है, लेकिन केमिस्ट्री कुछ खास नहीं जमती।
निर्देशन और लेखन: अनुराग बसु ने फिर से शहरी जीवन की जटिलताओं को सहजता से परदे पर उतारा है। हालांकि इस बार कहानी उतनी गहराई तक नहीं उतरती, फिर भी कुछ पल काफी असरदार हैं।
संगीत: प्रीतम का संगीत फिल्म की आत्मा है। अरिजीत सिंह द्वारा गाया गया टाइटल ट्रैक Metro… In Dino बहुत खूबसूरत बन पड़ा है। बैकग्राउंड स्कोर भी काफी प्रभावशाली है।
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कमज़ोरियां:
कहानी की गति: फिल्म की लंबाई थोड़ी खलती है। कुछ हिस्से खिंचे हुए लगते हैं और इंटरकनेक्टेड स्टोरीज़ के बीच एकरूपता की कमी दिखती है।
भावनात्मक गहराई की कमी: पहली मेट्रो फिल्म की तुलना में यह फिल्म उस स्तर की इमोशनल पकड़ नहीं बना पाती। कुछ पात्र अधूरे से महसूस होते हैं, खासकर युवा जोड़ियों के ट्रैक।
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निष्कर्ष:
मेट्रो… इन डिनो एक संवेदनशील, सच्चे जज्बातों से भरी फिल्म है जो शहरी जीवन की उलझनों को छूने की कोशिश करती है। हालांकि यह अपनी पिछली कड़ी जैसी गहराई नहीं ला पाती, फिर भी कुछ सीन दिल को छूते हैं और अनुभवी कलाकारों का अभिनय फिल्म को एक स्तर ऊपर ले जाता है।
अंतिम रेटिंग: ⭐⭐⭐ (3/5) – एक बार देखी जा सकती है, खासकर अगर आपको संवेदनशील, किरदार-आधारित फिल्में पसंद हैं।
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