
देवशयनी एकादशी 2025, जिसे आषाढ़ी एकादशी या हरि शयनी एकादशी भी कहा जाता है, हिंदू धर्म में अत्यंत पावन और पुण्यदायी तिथियों में से एक है। यह दिन भगवान विष्णु के योग निद्रा में जाने का प्रतीक है और इसी के साथ चातुर्मास की शुरुआत भी होती है। वर्ष 2025 में देवशयनी एकादशी रविवार, 6 जुलाई को मनाई जाएगी।
—
🗓️ देवशयनी एकादशी 2025: तिथि और शुभ मुहूर्त
एकादशी तिथि प्रारंभ: 5 जुलाई 2025 को शाम 05:41 बजे
एकादशी तिथि समाप्त: 6 जुलाई 2025 को दोपहर 03:18 बजे
पारण का समय (व्रत खोलने का मुहूर्त): 7 जुलाई 2025 को सुबह 06:02 से 08:42 बजे तक

—
🙏 देवशयनी एकादशी का महत्व:
यह एकादशी भगवान विष्णु की योग निद्रा में जाने की तिथि मानी जाती है। चार माह तक (कार्तिक मास की देवउठनी एकादशी तक) वे क्षीर सागर में शेषनाग की शैय्या पर विश्राम करते हैं। इन महीनों में विवाह, गृह प्रवेश जैसे मांगलिक कार्य नहीं किए जाते।
महाराष्ट्र में इस दिन का विशेष महत्व है, जहां प्रसिद्ध पंढरपुर वारी यात्रा का समापन होता है और भक्त विट्ठल (भगवान कृष्ण का रूप) के दर्शन करते हैं।
—
🌸 व्रत कथा:
पद्म पुराण के अनुसार, सतयुग में मंदाता नामक एक धर्मपरायण राजा का राज्य लंबे समय से अकाल से पीड़ित था। जब उन्होंने नारद मुनि से समाधान पूछा, तो उन्होंने देवशयनी एकादशी व्रत रखने की सलाह दी। राजा ने पूरे भक्ति भाव से व्रत किया और उनके राज्य में वर्षा व समृद्धि लौटी।
—
🕉️ पूजा विधि:
1. व्रत: श्रद्धालु निर्जल या फलाहार व्रत रखते हैं।
2. प्रातः स्नान: गंगा जैसे पवित्र नदी में स्नान करना पुण्यदायी होता है।
3. भगवान विष्णु की पूजा: तुलसी पत्र, पुष्प, दीप, धूप और प्रसाद अर्पित करें।
4. भजन-कीर्तन: रात्रि जागरण कर भगवान विष्णु के भजन गाए जाते हैं।
5. दान-पुण्य: इस दिन अन्न, वस्त्र, और धन का दान करना विशेष फलदायी होता है।

—
🌿 तुलसी का विशेष महत्व:
तुलसी भगवान विष्णु को अत्यंत प्रिय है। देवशयनी एकादशी पर तुलसी पत्र अर्पित करने से व्रत का फल कई गुना बढ़ जाता है और विशेष पुण्य प्राप्त होता है।
—
🧘♂️ देवशयनी एकादशी व्रत के लाभ:
मोक्ष की प्राप्ति
पापों से मुक्ति
मन, शरीर और आत्मा की शुद्धि
धन, सुख और शांति की प्राप्ति
—
📌 निष्कर्ष:
देवशयनी एकादशी 2025 आध्यात्मिक साधना और भगवान विष्णु की भक्ति का श्रेष्ठ अवसर है। यह दिन आत्म संयम, व्रत और दान के माध्यम से ईश्वर से जुड़ने का मार्ग प्रशस्त करता है। चार महीनों के चातुर्मास में यह पहला पावन पड़ाव होता है, जो साधना और तपस्या की शुरुआत है।
Disclaimer: इस ब्लॉग में दी गई सभी जानकारियाँ केवल सामान्य जानकारी और धार्मिक/सांस्कृतिक मान्यताओं पर आधारित हैं। पाठकों से अनुरोध है कि किसी भी आध्यात्मिक या धार्मिक उपाय को अपनाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ या ज्ञानी व्यक्ति से परामर्श अवश्य लें। इस लेख में दी गई जानकारी की पूर्णता, सटीकता या विश्वसनीयता की हम कोई गारंटी नहीं देते। इस ब्लॉग में उल्लिखित किसी भी जानकारी के उपयोग से उत्पन्न परिणामों की जिम्मेदारी लेखक या प्रकाशक की नहीं होगी।