
बांग्लादेश, जो एक धर्मनिरपेक्ष गणराज्य के रूप में पहचाना जाता है, वहां हिंदू समुदाय की स्थिति हाल के वर्षों में चिंताजनक बनी हुई है। जहां संविधान सभी नागरिकों को समान अधिकार देने की बात करता है, वहीं जमीनी हकीकत में हिंदू अल्पसंख्यकों को भेदभाव, हिंसा और सामाजिक असुरक्षा का सामना करना पड़ रहा है।
जनसंख्या और ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
बांग्लादेश की कुल आबादी का लगभग 8 प्रतिशत हिस्सा हिंदू समुदाय का है, जोकि पहले की तुलना में तेज़ी से घटा है। 1947 में यह अनुपात लगभग 22% था, लेकिन 2024 के अंत तक यह गिरकर 7.95% तक पहुंच चुका है। जनसंख्या में यह गिरावट केवल प्राकृतिक कारणों से नहीं हुई, बल्कि इसके पीछे सामाजिक और राजनीतिक कारण भी गहरे हैं।
हालिया घटनाएं और धार्मिक असहिष्णुता
2024 और 2025 के आरंभिक महीनों में हिंदू समुदाय के खिलाफ कई हमले सामने आए हैं। सोशल मीडिया पर अफवाह फैलाकर मंदिरों पर हमले, दुर्गा पूजा पंडालों में तोड़फोड़, और हिंदू व्यवसायों को जलाने जैसी घटनाएं रिपोर्ट की गई हैं। अक्टूबर 2024 में चटगांव, बारीशाल और रंगपुर जिलों में हुई सांप्रदायिक हिंसा ने पूरी दुनिया का ध्यान खींचा।
मौजूदा चुनौतियाँ
1. धार्मिक कट्टरता में वृद्धि: बांग्लादेश में कुछ कट्टरपंथी संगठन खुलेआम हिंदू-विरोधी बयान देते हैं। इसका सीधा असर अल्पसंख्यकों की मानसिक सुरक्षा पर पड़ता है।
2. संपत्ति हड़पने के प्रयास: कई हिंदू परिवारों की जमीनें या दुकानें जबरन छीन ली जाती हैं, खासकर जब वे दूसरे देशों में बसे अपने रिश्तेदारों के पास चले जाते हैं।
3. कानूनी संरक्षण की कमी: भले ही बांग्लादेश के कानून अल्पसंख्यकों की रक्षा की बात करते हैं, लेकिन ज़मीनी स्तर पर पीड़ितों को न्याय मिलना कठिन होता है। एफआईआर दर्ज न होना, जांच में देरी और दोषियों को राजनीतिक संरक्षण जैसी समस्याएं आम हैं।
4. महिलाओं के खिलाफ अत्याचार: हिंदू लड़कियों के अपहरण और जबरन धर्मांतरण के मामले भी कई बार सामने आते हैं, जिससे समुदाय में गहरा भय व्याप्त है।
सरकार की भूमिका और प्रतिक्रिया
बांग्लादेश सरकार ने हालिया हिंसाओं की आलोचना की है और अल्पसंख्यकों को सुरक्षा देने का वादा किया है। प्रधानमंत्री शेख हसीना ने बार-बार यह कहा है कि बांग्लादेश सभी धर्मों के लोगों के लिए समान रूप से सुरक्षित है। इसके बावजूद, प्रशासनिक स्तर पर ठोस और त्वरित कार्रवाई की कमी महसूस की जाती है।
उम्मीद की किरण
इन सबके बीच, बांग्लादेश में कुछ सकारात्मक पहलें भी हुई हैं। जैसे–
अल्पसंख्यकों के लिए अलग हेल्पलाइन शुरू की गई है।
कई जिलों में सुरक्षा बढ़ाई गई है।
सांप्रदायिक हिंसा में दोषियों पर सख्त कार्रवाई की घोषणाएं की गई हैं।
इसके अलावा, बांग्लादेश के अनेक प्रगतिशील मुस्लिम बुद्धिजीवी, मानवाधिकार संगठन और छात्र संगठन हिंदू समुदाय के पक्ष में आवाज़ उठा रहे हैं। अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भी यह मुद्दा उठाया जा रहा है, जिससे दबाव बढ़ा है।
निष्कर्ष
बांग्लादेश में हिंदू समुदाय की स्थिति लगातार परीक्षा के दौर से गुजर रही है। जहां एक ओर उन्हें हिंसा, असुरक्षा और भेदभाव का सामना करना पड़ता है, वहीं दूसरी ओर समाज में एक सकारात्मक तबका भी उनके साथ खड़ा है। ज़रूरत है तो बस सख्त प्रशासनिक इच्छाशक्ति, त्वरित न्याय प्रणाली और अंतरराष्ट्रीय दबाव की ताकि बांग्लादेश सचमुच एक धर्मनिरपेक्ष और समावेशी राष्ट्र बन सके।
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